**__यीशु के नजदीक कैसे जाएँ __**
बहुत बार विश्वासी पवित्र आत्मा के साथ रिश्ता बनाने के बगैर यीशु के नजदीक जाना चाहते हैं। यह उसी गलती की तरह है जो फरीसियों ने की थी। “उन्होंने यीशु से कहा, ‘हम व्यभिचार से उत्पन्न नही हुए । हमारा एक ही पिता है और वह परमेश्वर है।’
यीशु ने उन से कहा “यदि परमेश्वर तुम्हारा पिता होता तो तुम मुझ से प्रेम करते, क्योंकि मैं परमेश्वर से निकला और आया हूँ, मुझे उसी ने भेजा है” (यहुन्ना 8:41- 42)।
फरीसी यीशु के बगैर परमेश्वर से रिश्ता चाहते थे। वे इस बात को मानने के खिलाफ थे परमेश्वर के मन में कुछ और योजना थी। यीशु ने फरीसियों को समझाया कि वह और उसका पिता एक हैं। और उसने आगे जा कर उनसे कहा, “यदि तुम मुझे जानते तो पिता को भी जानते” (यहुन्ना 4:7)
परन्तु फरीसियों ने मानने से इन्कार कर दिया। क्योंकि वे पुत्र के द्वारा पिता के पास आने के लिए तैयार नहीं थे, वे वास्तविक रूप से पिता के निकट ही नहीं आ सकते थे।
इसी तरह यीशु ने स्पष्ट कर दिया की वह अब पृथ्वी पर नही रहेगा, और पिता ने पवित्र आत्मा (वह जो बिलकुल हमारे उद्धारकर्ता जैसा है) को हमारी मदद के लिए भेजा है ( यहुन्ना 16:7) आत्मा को भेजा गया कि यीशु को प्रगट करे, जैसे कि बेटे को भेजा गया था कि बाप को प्रगट करे।
हमे याद रखना चाहिए कि पवित्र आत्मा यीशु की महिमा करने में प्रसन्न होता है। यदि आप यीशु के बारे में और जानने के इच्छुक हैं, तो आपको पवित्र आत्मा के साथ समय बिताना चाहिए। आत्मा आपके सामने यीशु को स्पष्ट प्रगट करेगा।
परन्तु पवित्र आत्मा केवल वहीँ मण्डराता है जहाँ उसको सम्मान मिलता है। यदि हम पवित्र आत्मा को सम्मान करते तो वह स्वयं को हम पर प्रगट करेगा; तो हम उसकी उपस्थिति का भरपूर आनन्द लेंगे और उसके बारे में जिसे वह प्रगट करता है जानकारी प्राप्त करेंगे।
सेवकाई के पिछले तीस साल में मैंने इस सच्चाई को बदलते हुए नही देखा है: वे लोग जो यीशु को अच्छी तरह से जानते हैं, वे वो हैं जो पवित्र आत्मा से घनिष्ठता रखते हैं। यह एक पूर्ण सत्य है, क्योंकि पवित्र आत्मा ही यीशु को हम पर प्रगट करता है।
“पवित्र आत्मा की घनिष्ठता मित्रता, आप सब के साथ बनी रहे” (2 कुरिन्थियों 13:14) घनिष्ठता को मैं मित्रता का सबसे गहरा स्तर मानता हूँ। कभी न भूलें कि पवित्र आत्मा की यह इच्छा है कि वह आपका मित्र बने। वह आपके साथ मेल – जोल के लिए तरसता है। याकूब 4:5 कहता है, “परमेश्वर ने जिस आत्मा को हम में समाविष्ट किया, उस को वह बड़ी ममता से चाहता है।” वह बड़ी ममता से आपका समय और ध्यान पाने का इच्छुक है। जरा सोचिये: पवित्र आत्मा परमेश्वर है, और उससे कुछ भी छिपा हुआ नही । उसकी जानकारी, ज्ञान और समझ सीमा रहित है — और वह स्वयं को आप पर प्रगट करने का इच्छुक है।
***___ घनिष्ठता __****
जब मैं कुछ ऐसी बात की जानकारी या समझ प्राप्त करता हूँ जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो तो मैं इसको उनके साथ बाँटने के लिए बेकरार हो जाता हूँ, जो मेरे बहुत नजदीक हैं। ऐसा ही आपके लिए भी सच है, और पवित्र आत्मा भी हम से अलग नहीं।
आप पवित्र आत्मा को सबसे नजदीकी सच्चा मित्र बना ले भाई बना लें और हर दुःख सुख और सभी बातें उन्ही से साझा करें, प्रार्थना में जाएँ, वचन पढ़ने जाए उनकी मदद लें, कहीं जाएँ उनको साथ ले कर जाएँ और आप उनकी उपस्थिति का आनन्द लें।

Lovely blog Apostle ji 🙂😁